Usha sharma

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लेखनी प्रतियोगिता -15-Apr-2023

कहानी : "आत्मसम्मान..... की जीत".... 

क्या किसी का श्राप सच में लगता है? सोचती हुई आंसुओं से अपना तकिया भिगो रही सुमन अपने विचार की गहराई में गिरती जा रही थी।
"सुमन! सुमू !!", उसने आँखें खोल दीं, ऐसा लगा मानो दूर किसी सुरंग से धीमी आवाज़ आ रही हो लेकिन ये तो माँ की आवाज़ थी।

"शादियों में अक्सर ऐसा होता रहता है, तू दिल छोटा मत कर, आंसू ना बहा, कल फिर से एक लड़का देखने आ रहा है। तू अच्छे से संवर कर रहना, हो सकता है बात बन जाए", माँ की बात में चिंता के भाव स्पष्ट झलक रहे थे।

सुमन ने उठकर मुँह धोया और सोचने लगी "पापा ही तो वो पहले आदमी हैं जिन्होने उसे आदमियों से सख़्त द्वेष करने पर मजबूर किया...ऐसे में वो क्या? कैसे किसी पुरुष के साथ मन से जुड़कर बंधन बना पाएगी?" 
...विचारों में खोई सुमन कल अपनी चचेरी बहिन की शादी में हुई घटना के बारे में सोचने लगी....! 

 दूल्हे के दोस्तों ने फेरों के समय दुल्हन की बहनें और सहेलियों के साथ चल रही हंसी - मजाक और नौंक - झौंक के बीच सुमन के सांवले रंग को लेकर जो छींटाकशी की थी वो उसे बिल्कुल भी सहन नहीं हुई थी। 
.. उसने भी क्रोध में दूल्हे के खास दोस्त निखिल को न जाने क्या नहीं बोला, उसे लगा सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं....! रिश्तेदारों के द्वारा उसकी माँ को कहे शब्द .. "ऐसी साँवली मुँहफट लड़की से शादी कौन करेगा?"अभी तक कानों में पिघले शीशे से बह रहे थे और यही कारण था कि वो वहाँ से रोते हुए अपने घर आ गई थी और यही प्रश्न मन लिए में रोते-रोते कब उसकी आँख लगी उसे पता ही नहीं चला। 
    अपने पापा को उसने बचपन से ही माँ के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा था... हर बात पर अपनी पत्नी को कमतर दिखाने का उनका प्रयास सुमन को पिता से दूर करता गया । 
वो सहमी सहमी रहती और सदा मन में हर दिन अनिश्चितताओं के बढ़ते सवाल लिए यही सोचा करती थी कि, "क्या लड़कियां हमेशा से ही बदनाम होने के लिए दुनिया में आई हैं?" 

   लेकिन वो मां की तरह कमजोर और लाचार बनना नहीं चाहती थी इसलिए उसने पढ़ने के साथ खुद को इतना सक्षम बनाने का ठान लिया था ताकि भविष्य में किसी भी पुरुष के अत्याचार का वो विरोध कर सके और आत्मसम्मान के साथ जी सके। 
ग्रेजुएशन के दौरान ही पिता की मृत्यु से ईश्वर ने उससे जहांँ एक सहारा लिया था तभी भी वो हारी नहीं..! 
यूंँ तो माँ और उसको साधन सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी उसने इतने कठिन समय में उसने माँ को एक बेटे की तरह संभाला था।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वयं आज एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी। 
 आज का दिन खास था रविवार के दिन उसकी भी छुट्टी थी।
 माँ सुमन को देखने आने वाले लड़के वालों के बारे में आशंकित सी थी.. क्योंकि कल रात की घटना के समय वो परिवार भी वहीं मौजूद था.! ये रिश्ता सुमन की बड़ी चचेरी बहन राशि के ससुराल पक्ष से ही आया था। 
सुमन ने मांँ के मुताबिक समय पर सभी तैयारियां कर ली थीं..
माँ का मन रखने के लिए उसने उनकी पसंद की गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, और मन ही मन ये निर्णय भी लिया था कि अपने आत्मसम्मान की कीमत पर किसी भी रिश्ते को नहीं स्वीकार करेगी। 
सांवले रंग तीखे नैन नक्श में भी सुमन बहुत सुंदर लग रही थी। उसकी योग्यता और स्वाभिमान का नूर उसकी विश्वसनीयता में चार चांद लगा रहा था। 
 नियत समय लड़के वाले आ गए थे। विश्वास अपने माता-पिता और दो अन्य परिवारों के साथ आए थे। 
नाश्ते पानी और बातचीत के दौरान विश्वास ने पिछली रात की बात छेड़ी तो सुमन की मां का डर और आशंका से दिल बैठ सा गया उन्हें डर था कि सुमन के कल रात के व्यवहार की वजह से ये रिश्ता बनने से पहले ही कहीं टूट जाए...! 

लेकिन ये क्या..! विश्वास की बातें सुनकर तो खुद सुमन भी अवाक.. सी रह गई......
 सुगठित सुंदर व्यक्ति वाले नामी कंपनी में कार्यरत विश्वास ने जो कहा,...... "मुझे सुमन की बेबाकी और गलत बात का विरोध करने का तरीका बहुत पसंद आया है... आजकल की पढ़ी लिखी पीढ़ी विशेष रूप से हर क्षेत्र में सक्षम होकर भी यदि लड़की अपने लिए आवाज़ नहीं उठाती तो उसका पढ़ना लिखना सब बेकार है.... सुमन की समझदारी की मैं दाद देता हूँ।" 
 
   सुमन की मां को तो ऐसा कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। खुशी से उनकी आँखें छलक आईं। विश्वास के माता-पिता भी चेहरे पर संतुष्टि के भाव लिए बेटे की बातों पर सहमति दिखा रहे थे। 
     उनका भी यही कहना था कि गलत का विरोध करने में कभी पीछे नहीं रहना चाहिए फिर सुमन तो एक अध्यापिका है... उनकी इस साहसी सोच से बेटियों को उनके कदम से बल मिलेगा। 
आज सुमन की पुरुषों के प्रति बनी धारणा गलत साबित हो रही थी लेकिन अब उसे इसके टूटने का जरा भी अफसोस या विरोध नहीं था.. क्योंकि यही उसके आत्म सम्मान की जीत थी। 
     विश्वास को अपनी ओर मुस्कुराता देख सुमन की नजरें कुछ पल के लिए विश्वास से मिलीं और लजाते हुए उसकी निगाहें सहमति से झुक गईं। 
स्वाभिमान से भरी सुमन ने आगे बढ़कर पूरे आत्मसम्मान के साथ विश्वास के माता-पिता के चरण स्पर्श के लिए। 

©®उषा शर्मा 
जामनगर (गुजरात) 

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7 Comments

Punam verma

16-Apr-2023 09:14 AM

Very nice

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Abhinav ji

16-Apr-2023 08:53 AM

Very nice 👍

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अदिति झा

16-Apr-2023 08:30 AM

Nice ☺️

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